सपा ने लोकसभा चुनाव में पहली बार परिवार के बाहर के किसी यादव को टिकट नहीं दिया है। यानी जिन पांच यादवों को मैदान में उतारा है, वे सभी सैफई परिवार के ही सदस्य हैं।
यादव राजनीति के भरोसे शिखर पर पहुंचे मुलायम सिंह की नीति से यह काफी अलग है। वह हर लोकसभा चुनाव में तीन से चार सीटों पर परिवार के अलावा भी यादवों को उतारते रहे हैं।
करीब 19.40 फीसदी हिस्सेदारी वाले यादव वोटबैंक पर अखिलेश के इस प्रयोग की परीक्षा होगी। सपा 62 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अब तक 59 उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। मैनपुरी से डिंपल, कन्नौज से अखिलेश यादव, आजमगढ़ में धर्मेंद्र यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव, बदायूं से आदित्य यादव मैदान में हैं।
अपनी-अपनी सीट पर फंसे क्षत्रप
सैफई परिवार के क्षत्रप अपनी ही सीट पर फंसे हुए हैं। वे अन्य सीटों नहीं पहुंच पा रहे हैं। भाजपा ने भी सैफई परिवार के उम्मीदवारों को उनके घर में ही घेरे रखने की रणनीति बनाई है, तो दूसरी तरफ यादव वोटबैंक को अपने पाले में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है।
बहरहाल, सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि भाजपा की हार चाल को जनता समझ चुकी है। सपा पीडीए के फॉर्मूले पर कार्य कर रही है। पांच यादवों को टिकट दिया है।
2014 में 13 तो 2019 में 11 यादवों को मिला था टिकट
वर्ष 1999 में पहली बार मुलायम सिंह सांसद बने थे। वह सात बार सांसद रहे, जबकि अखिलेश ने वर्ष 2000 में लोकसभा के उपचुनाव से सियासी सफर शुरू किया।
फ्लैशबैक में जाएं तो वर्ष 2014 में सपा ने 13 यादवों को टिकट दिया था, जिनमें मुलायम सहित पांच लोग विजेता रहे। इसी तरह 2019 में 11 यादवों को टिकट मिला था, जिसमें पांच सीटें मिलीं। मुलायम और अखिलेश के अलावा अन्य हार गए थे।
सभी ने किया निराश
पिछड़ों में यादवों की हिस्सेदारी 19.40 फीसदी है। सभी दलों ने निराश किया है। सपा ने सैफई परिवार के पांच लोगों को टिकट दिया है। इन्हें यादव के तौर पर नहीं देखा जाता है।
फिर भी प्रतिशत के हिसाब से देखें तो सपा ने 8.47 फीसदी टिकट दिया है, जबकि बसपा ने अब तक घोषित टिकट के अनुसार 9.30 फीसदी टिकट यादवों को दिया। भाजपा ने सिर्फ एक यादव को उतारा है। ऐसे में यादव समाज को अपनी हिस्सेदारी के लिए नई रणनीति अपनानी होगी।